नीमच टुडे न्यूज़ | प्रकृति के पर्यावरण संरक्षण के लिए जीव दया आवश्यक होती है। जीव दया करने से पुण्य कर्म बढ़ता है। पाप कर्म करता है। व्यक्ति मोक्ष तो चाहता है लेकिन प्रयास नहीं करता चिंतन का विषय है।भोग पदार्थ के त्याग बिना आत्म कल्याण का मार्ग नहीं मिलता हैं।यह बात मुनि वैराग्य सागर जी महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में श्री शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मंदिर नीमच में शताब्दी वर्ष शांति सिंधु सूर्य महोत्सव में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे उन्होंने कहा कि समयसार के भविष्य को समझे तो आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है ।व्यक्ति समस्याओं से बचाना चाहता है लेकिन भौतिक पदार्थों से दूर नहीं रहता है। जितना व्यक्ति भौतिक पदार्थों के पास रहेगा। उतना समस्याओं से गिरा रहेगा। समस्याओं से यदि बचना है तो भौतिक पदार्थ का कम से कम उपयोग कर उसे त्याग करने का प्रयास करना होगा। तभी आत्म कल्याण का मार्ग मिल सकता है।
मुनी सुप्रभ सागर महाराज ने कहा कि रहते हुए मनुष्य को चमड़े के उपयोग से बचना चाहिए ताकि जीव हिंसा से हम बच सके और जीव हिंसा का पाप नहीं हो सके। हमें इसका प्रयास करना चाहिए। साधु संतों के इस देश में मिलावट के बड़े-बड़े घोटाले हो रहे हैं जनप्रतिनिधि मौन है। आम जनता को पता ही नहीं चल रहा है कि कहां मिलावट हो रही है चिंतन का विषय है। सभी व्यक्तियों को बाजार में बने सामग्री का बहिष्कार करना चाहिए और स्वयं घर में ही भोजन सामग्री बनाकर उसका उपयोग करना चाहिए तभी हम स्वस्थ जीवन जी सकते हैं। अन्यथा हमें बीमारियों का सामना करना पड़ेगा इसके लिए हम स्वयं जिम्मेदार होंगे। मूंगफली के तेल में पाम तेल की मिलावट आ रही है इससे हमें बचना चाहिए। हमें घाणी का तेल स्वयं सामने खड़े रहकर निकलवा कर लाना चाहिए। तभी हम स्वस्थ रह सकते हैं। आचार्य वंदना आरती के साथ हुई। चारित्र चक्रवर्ती ज्ञान वृद्धि अक्षय निधि प्रतियोगिता आयोजित हुई, सुबह मंगलाचरण, चित्रनावरण शताब्दी रजत प्रथमाचार्य 108 शांति साग महाराज महामुनिराज का महा पूजन, शास्त्रदान के बाद प्रवचन हुए।