नीमच टुडे न्यूज़ | स्वस्थ शरीर के लिए शुद्ध आहार आवश्यक होता है। स्वस्थ मन के लिए पवित्र विचारों की आवश्यकता होती है। पवित्र विचारों के लिए शुद्ध आहार आवश्यक है। शुद्ध आहार और संयम के बिना आत्मा का कल्याण नहीं होता है। यह बात मुनि वैराग्य सागर महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में श्री शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मंदिर नीमच में मंगलाष्टक अभिषेक शांति धारा घट यात्रा ध्वजारोहण कार्यक्रम में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संसार में रहते हुए यदि आत्मा का कल्याण करना है और समाधि मरण को प्राप्त करना है तो आहार व संयम जीवन का पालन करना होगा। प्राचीन काल में ऋषि मुनि समाधि के लिए 12 वर्ष पूर्व से ही संयम जीवन का पालन करना शुरू कर देते थे, 4 वर्ष पूर्व अन्न का त्याग कर देते थे और वह अपनी आत्मा को पवित्र कर अपनी आत्मा का कल्याण कर लेते थे।
आजकल मनुष्य ज्यादा खाकर मोटा होता जा रहा है और रोगी बनता जा रहा है चिंतन का विषय है। साधना के बिना कल्याण नहीं हो सकता है। मन से साधना किए बिना आत्मा पवित्र नहीं होती है। संसार में विकल्प जहां बढ़े हैं वहां संयम पालन करना भी चाहिए। त्याग की साधना बढ़ाना आवश्यक है। विदेश में सलाह के लिए लाखों रुपए लगते हैं। भारत में सलाह प्रत्येक व्यक्ति निःशुल्क प्रदान करता है। चिंतन का विषय है। कल्याण के लिए चिंतन नहीं करता है चिंतन का विषय है। दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विजय जैन विनायका जैन ब्रोकर्स, मीडिया प्रभारी अमन जैन विनायका ने बताया कि आचार्य वंदना आरती के साथ हुई। सुबह 6:45 बजे मंगलाष्टक विधान से प्रारंभ हुआ ।विधानाचार्य बाल ब्रह्मचारी भैया जी भावेश जैन ने गणधर वलय विधान करवाया।110 गणधर आराधना अर्क चढ़ा कर की गई। और संगीतकार प्रथम जैन दमोह ने विभिन्न भजन प्रस्तुत किये। गणधर गंणधर वलय विधान में समाज जनों ने उत्साह के साथ भाग लिया।
मुनि सुप्रभ सागर मसा ने कहा कि सम्यक दृष्टि का पालन करने से क्रोध पर नियंत्रण रहता है। संत का क्रोध क्षणिक होता है। वह समाज कल्याण के लिए होता है। सम्यक दृष्टि का क्रोध तत्काल क्षीण हो जाता है। सम्यक दृष्टि संवेग भाव जागृत होता है। गति समचीन हो जाती है। संवेग होता है वहां की गति नियंत्रण नहीं हो तो दुर्घटना हो सकती है। संयम व सम्यक दर्शन का पालन नहीं हो तो आत्म कल्याण नहीं होता है। आयु कब पूर्ण होगी किसी को ज्ञात नहीं होता है। जन्म लेने वाले बच्चों को भी शुगर का रोग हो रहा है। रस त्याग को तो छोड़ो, रात्रि भोजन भी मुश्किल से छूटता है। जमीकंद छोड़ने में भी मुश्किल हो रही है। जीवन में संवेग भाव से हम क्या प्राप्त कर सकते हैं यह जानना चाहिए। संसार से हमें नुकसान का चिंतन करना चाहिए। शरीर से हमें कल्याण प्राप्त करना चाहिए था लेकिन हम क्या प्राप्त कर रहे हैं चिंतन का विषय है। उपेक्षा भाव रखते हुए विषयों को छोड़ना चाहिए। सम्यक दर्शन का होना सहज और सरल नहीं होता है धर्म में मिथ्या दृष्टि में आस्तिक के भाव होना इसमें समय दर्शन की स्थिरता बनाएं रखना भी कठिन हो रहा है। देव शास्त्र गुरु के बताए मार्ग पर चलने वाला समयक दर्शन को प्राप्त कर सकता है। विरक्ति के अनुभव के बिना सम्यक दर्शन को प्राप्त करना भी व्यर्थ हो जाता है।