नीमच टुडे न्यूज़ | माता-पिता संसार में संतान को जीवन जीने की कला का मार्गदर्शन सिखाने वाले प्रथम व्यक्ति होते हैं। आत्मा से परमात्मा को मिलाने वाला गुरु आत्म कल्याण का मार्ग दिखाने वाला होता है। माता-पिता और गुरु के समर्पण बिना संसार में कहीं भी सम्मान नहीं मिलता है। यह बात आचार्य जिन सुंदर सुरी श्रीजी महाराज के शिष्य पन्यास मुनी तत्व रुचि विजय जी मसा ने कहीं ।वे जैन श्वेतांबर भीड़ भंजन पार्श्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के तत्वाधान में धर्म आगम पर्व जन्म मृत्यु के सूतक विषय पर आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि संसार में चाहे कितनी ही कठिन परिस्थिति क्यों ना आ जाए माता-पिता और गुरु के प्रति क्रोध नहीं करना चाहिए क्रोध करने पर शिष्य या पुत्र भी आज्ञा नहीं मानता है लेकिन प्रेम से समझाया जाए तो उसमें क्रांतिकारी परिवर्तन आ सकता है।
इसलिए शिष्य और संतान को सदैव प्रेम सद्भाव के ही संस्कारों के साथ सीखाना चाहिए तभी वह अपनी बुराई एवं गलती को सुधार कर अच्छाई की ओर निरंतर अग्रसर हो सकता है। पूर्व जन्म के पुण्य कर्मों के कारण ही साधु संत महानता की ओर निरंतर अग्रसर होते हैं वह स्वयं की आत्मा का कल्याण करते हैं और दूसरों को भी कल्याण का मार्ग दिखाते हैं। महापुरुषों की सेवा में देवता भी उपस्थित रहते हैं। पवित्रता के साथ स्वाध्याय पूजा प्रतिदिन समर्पण पवित्र भाव से करें तो उसकी आत्मा का कल्याण हो सकता है। संत के सही ज्ञान को जीवन में आत्मसात कर लेना चाहिए। गलत प्रतीत होने पर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहिए। अलग-अलग संतो की अलग-अलग परंपराएं होती है इसलिए मान्यता और परंपराएं अलग हो सकती है इसलिए सभी अपनी-अपनी परंपरा और मान्यता के अनुसार साधु संतों का आदर करें। पूज्य आचार्य भगवंत जिनसुंदर सुरिजी मसा, धर्म बोधी सुरी श्रीजी महाराज आदि ठाणा 8 का सानिध्य मिला। प्रवचन एवं धर्मसभा हुई। प्रतिदिन सुबह 7.30 बजे प्रवचन करने के व साध्वी वृंद के दर्शन वंदन का लाभ नीमच नगर वासियों को मिला प्रवचन का धर्म लाभ लिया।