नीमच टुडे न्यूज़ | दिगंबर श्रवण परंपरा में साधु दिगंबर अवस्था में ही विहार करते हैं और अपनी तपस्या कर पर कल्याण के लिए निरंतर प्रयासरत रहते हैं, 20वीं शताब्दी में देश के पश्चिम बंगाल कर्नाटक तमिलनाडु आदि राज्यों में मुनी विहार बहुत कठिन था। तब शांति सागर महाराज ने निर्गत रूप से शिखरजी पैदल यात्रा की। उनकी इस यात्रा से प्रभावित होकर हैदराबाद निजाम की बेगम ने उनके दर्शन किए और उसे क्षेत्र में दिगंबर साधुओं के विहार की स्वीकृति प्रदान की थी। उन्होंने जीव दया जियो और जीने दो को जन-जन तक पहुंचाया, शांति सागर महाराज दिगंबर श्रमण परंपरा के आदर्श संवाहक थे। उन्होंने मुस्लिम समुदाय के लोगों को भी दिगंबर श्रवण परंपरा के संतों के दर्शन और पर कल्याण की भावना के संदेश को जीवन अपनाने के लिए प्रेरणा प्रदान की थी जो आज भी आदर्श प्रसंग है। यह बात सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मांगलीक भवन नीमच में रविवार सुबह शांति सागर मंडल विधान में उपस्थित श्रद्धालु भक्तों को संबोधित करते हुए मुनी सुप्रभ सागर महाराज ने व्यक्त किये।
उन्होंने कहा कि शांति सागर के व्यक्तित्व और कृतित्व जीव दया को देखकर अनेक लोगों ने दीक्षा ग्रहण की थी। उनके उपदेशों को जीवन में आत्मसात करना ही उनके प्रति सच्ची विनयांजलि होगी। मुनि वैराग्य सागर महाराज ने कहा कि दक्षिण भारत के मंदिरों में शिखर प्रत्येक मंदिर पर होता है। मंदिर प्रकृति की सुरक्षा करते हैं। 1965 में सुमति सागर महाराज के सानिध्य में देश में मात्र 65 दिगंबर जैन मुनि थे। शांति सागर जी महाराज के प्रयास के बाद 1500दिगम्बर मुनी पैदल विहार कर समाज कल्याण के लिए तपस्या करते हैं। बच्चों को पढाना अच्छी बात है लेकिन आत्म कल्याण के लिए धर्म संस्कार भी समय-समय पर सीखना चाहिए नहीं तो उनकी आत्मा का कल्याण मुश्किल हो जाता है। प्रकृति से जुड़कर मनुष्य को जीवन जीना चाहिए इसका उदाहरण दक्षिण भारत के कर्नाटक क्षेत्र के विभिन्न गांव हैं जहां कुछ जैन समाज के लोग आज भी गन्ने की खेती कर ही अपना जीवन का पालन पोषण करते हैं वे कभी व्यापार नहीं करते हैं।
किसान परमात्मा से सीधे जुड़े हुए है और वे प्रतिदिन अपनी गाय का दूध प्रत्येक मंदिर में पहुंचाते हैं। जैन धर्म की संस्कृति प्रकृति के साथ जियो और जीने दो का संदेश देती है। मानव प्रकृति से दूर हो रहा है इसलिए बाद में तप साधना नहीं कर पा रहा है। बाल ब्रह्मचारी राकेश शास्त्री सागर ने कहा कि चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का अध्ययन सभी लोग नहीं कर पाते हैं इसलिए इस आयोजन को किया गया है ताकि शांति सागर महाराज के त्याग और प्रेरणा की शिक्षा को जन-जन तक पहुंचा जा सके। देश के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति भी दिगंबर जैन मुनि को नमन करने आते हैं उसके बावजूद भी दिगंबर जैन मुनि की सुरक्षा के प्रति समाज के लोगों को सजग होना पड़ेगा। इस अवसर पर विधान के धर्म लाभार्थी पूर्णाजक पुष्प कुमार कौशल्या विनोद नूतन जीवांश शाह परिवार थे। दिगंबर जैन समाज के अध्यक्ष विजय विनायका जैन ब्रोकर्स, मीडिया प्रभारी अमन विनायका ने बताया कि रविवार को सुबह ध्वजारोहण, मंगलाचरण, चित्रानावरण शताब्दी रजत कलश स्थापना , प्रथमाचार्य 108 शांति सागर महाराज महामुनिराज का संगीत मय महा पूजन , शास्त्रदान के बाद परी चर्चा प्रारंभ हुई।
जिसमें शशि विजय विनायका द्वारा आचार्य श्रीजी का ग्रहस्थ जीवन परिवार एवं वंश परंपरा, शशि मनीष सोनी नीमच द्वारा आचार्य श्री जी का ब्रह्मचर्य मुनि दीक्षा एवं आचार्य पद विषय पर तथा प्रमोद गोधा आचार्य श्री जी द्वारा प्रदत्त मुनि की साधना दीक्षा पर अपने विचार व्यक्त किए। कार्यक्रम के बाद मुन्नी द्वय की आहारचार्य शाम 6:15 बजे आचार्य वंदना संगीत मय महा आरती रात्रि 8 बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम व आचार्य श्री के जीवन पर आधारित वीडियो का प्रदर्शन हुआ। कार्यक्रम का संचालन अजय कासलीवाल विजय विनायका ने संयुक्त रूप से किया।
-इनका किया सम्मान
इस अवसर पर नीमच मंदिर में चरण पादुका समिति पदाधिकारीयों द्वारा शांति सिंधु महोत्सव के लिए धार्मिक अनुष्ठानों में उल्लेखनीय योगदान के लिए समाज की विभिन्न सेवा करने वाले समाज जनों का सम्मान किया गया इसमें प्रमुख रूप से 51 चरण पादुका पादुका पाषाण प्रतिमा के धर्म लाभार्थी बेग सॉन्ग के प्रतिनिधि विनोद लोहारिया एवं उनके सहयोगी परिजनों, पूरे आयोजन के धार्मिक पृष्ठभूमि की योजना में सहयोगी महुआ भीलवाड़ा के निवासी पंडित बृजेश शास्त्री, पुण्य लाभार्थी पुष्प कुमार नूतन जीवन शाह परिवार नीमच एवं भीलवाड़ा के परिवार जनों का, मांगीलाल शर्मा, का, मुन्नी वैराग्य सागर जी के भोपाल से पधारे परिवारजनों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया।
फोटो एवं वीडियो प्रदर्शनी का प्रसारण,
शांति सागर महाराज के जीवन चरित्र से जुड़ी आदर्श प्रेरणादाई प्रसंग में दिगंबर श्रवण परंपरा की सुरक्षा के लिए आचार्य शांति सागर महाराज ने पूरे देश के विभिन्न प्रमुख स्थलों पर स्वयं खड़े होकर फोटो खिंचवा थे और उन फोटो के माध्यम से पूरे देश को संदेश दिया था कि दिगंबर मुनि का बिहार सभी जगह हो सकता है । उसे समय अंग्रेजों ने भी वीडियो बनाई थी जिसका संकलन का प्रसारण आज किया जा रहा है। विभिन्न घटनाओं की छायाचित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ किया गया जिसका अवलोकन सभी समाज जनों ने किया।