नीमच टुडे न्यूज़ | मनुष्य सुबह उठने के बाद देर रात तक हर कार्य करने के बाद यही सोचता है कि मुझे सुख शांति मिले, सुख शांति की खोज में भटकता रहता है लेकिन उसे शांति नहीं मिलती है। पापों की वृर्ती होगी तो आत्मा शांति नहीं मिल सकती है। मनुष्य को पाप कर्म से बचना होगा तभी उसे सच्ची शांति मिल सकती है। मनुष्य संसार में बार-बार भ्रमण करता रहता है इसी का नाम संसार है। जन्म बचपन जवानी बुढ़ापा परिवर्तन संसार चलता रहता है। सच्चाई के साथ धर्म का पालन करेंगे तो आत्मा को शांति मिलती है। यह बात मुनि वैराग्य सागर महाराज ने कही। वे श्री सकल दिगंबर जैन समाज नीमच शांति वर्धन पावन वर्षा योग समिति नीमच के संयुक्त तत्वाधान में 40 विद्युत केंद्र के पीछे गली में श्री शांति सागर मंडपम दिगंबर जैन मंदिर नीमच में शताब्दी वर्ष शांति सिंधु सूर्य महोत्सव में आयोजित धर्म सभा में बोल रहे थे।
उन्होंने कहा कि यह दुनिया एक रंग मंच है इसमें कोई डॉक्टर, शिक्षक, वकील, पुलिस, व्यापारी,राजनेता तो कोई चोर का अभिनय करता है संसार में प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता के अनुसार पात्र का चयन होता है। सभी पात्र अस्थाई है 6 ढाला ग्रंथ के अनुसार संसार के दुखों का वर्णन इस प्रकार है। पशु योनि और मानव योनि दोनों हमारे सामने है मानव के पास सब कुछ है लेकिन शांति नहीं है पशु के पास कुछ भी नहीं है लेकिन शांति है। हमें शांति चाहिए तो वैराग्य भाव को जीवन में आत्मसात करना होगा। मिठाई के आहार की अपनी एक सीमा होती है यदि सीमा से अधिक मिठाई खाएंगे तो वह भी नुकसान करती है। कोई भी वस्तु नित्य नहीं है जो साधन की स्थिति मिल रही है उसी में आनंद लेना चाहिए ।वही सच्चा संतुष्ट होता है। प्रकृति परिवर्तनशील है। बरसात के बाद सर्दी आने वाली है पंखे बुरा लगने लग जाएंगे। परिवर्तन का नाम ही संसार है। आत्मा का कल्याण करना है तो चारों गतियां का चिंतन करना होगा। मनुष्य को पंखा बंद होते ही गर्मी लगने लग जाती है लेकिन पशु बिना पंखे में भी रहने की आदत बना लेते है हमें इससे प्रेरणा लेकर दुखों को सहन करने की का अभ्यास करना होगा। पानी को व्यर्थ बहाना नहीं चाहिए पानी का सदुपयोग करना चाहिए और जीव दया का पालन करना चाहिए। लाइट पंखा भी फालतू नहीं चलना चाहिए इससे भी जीव हत्या का पाप लगता है। जीव हिंसा होती है और पैसा भी व्यर्थ जाता है। धर्मशाला और मंदिर में लाइट फालतू उपयोग नहीं करना चाहिए।
-मनी सुप्रभ सागर महाराज ने कहा कि सत्य बात भी अप्रिय नहीं होनी चाहिए। रात्रिभोजन का सदैव त्याग करना चाहिए। पानी सदैव छान कर पीना चाहिए। मनुष्य की यदि इच्छा शक्ति हो तो समाज सेवा का कठिन से कठिन कार्य भी सरलता के साथ पूरा हो सकता है। महाराष्ट्र के गांव में ग्रामीणों ने पूरे मंदिर का निर्माण पानी को छानकर किया था जो आज भी आदर्श प्रेरणादाई प्रसंग है। किसी एक गांव में एक ग्रामीण महिला इतनी दयालु है कि वह गाय को भी पानी छानकर पिलाती है इससे प्रेरणा लेकर हमें भी पानी छानकर पीना और पिलाना चाहिए। जीव दया का पालन हो सकता है और हमारी आत्मा का कल्याण हो सकता है। व्यापार या कोई भी कार्य करते समय अहिंसा व्रत का पालन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। व्यापार में झूठ नहीं बोलना चाहिए। ऐसा सच भी नहीं बोलना चाहिए कि दूसरों के लिए प्राण घातक बन जाए। कठोर वचन नहीं बोलना भी हिंसा और पाप कर्म को बढ़ावा देना होता है। अहिंसा का पालन करना है तो दूसरों को कड़वे वचन नहीं बोलना चाहिए। अपरिग्रह का पालन करेंगे तो जीवन में पुण्य बढ़ता रहेगा।आचार्य वंदना आरती के साथ हुई। धार्मिक प्रश्न मंच प्रतियोगिता आयोजित हुई, सुबह मंगलाचरण, चित्रनावरण शताब्दी रजत प्रथमाचार्य 108 शांति सागर महाराज महामुनिराज का महा पूजन, शास्त्रदान के बाद प्रवचन हुए।