नीमच टुडे न्यूज़ | महाविद्यालय में सिकल सेल एनीमिया एवं थैलेसीमिया पर एक महत्वपूर्ण व्याख्यान का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. एन के डबकरा द्वारा की गई, जिन्होंने छात्राओं को इस विषय की महत्वता के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर वर्ष 7 से 10 हजार थैलेसीमिया पीड़ित बच्चों का जन्म होता है । इसलिए, यह आवश्यक है कि विवाह से पहले महिला-पुरुष दोनों अपनी जांच करा लें ताकि थैलेसीमिया के खतरे को कम किया जा सके।
इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में ब्लड बैंक और यूथ रेड क्रॉस से पधारे सत्येंद्र राठौड़ ने छात्राओं को विस्तृत जानकारी दी । उन्होंने बताया कि ये रक्त संबंधी विकार क्या होते हैं, इसके लक्षण, बचाव के उपाय और वर्तमान स्थिति के बारे में जागरूकता फैलाई। उन्होंने अपने उद्बोधन ने कहा बताया कि थैलेसीमिया एक आनुवंशिक रक्त विकार है जो माता-पिता से बच्चों में स्थानांतरित होता है। यह विकार हीमोग्लोबिन के उत्पादन में गड़बड़ी के कारण होता है, जिससे रक्ताल्पता और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं।
- मेजर थैलेसेमिया: यह विकार तब होता है जब माता-पिता दोनों के जीन में थैलेसीमिया होता है। इससे बच्चे को गंभीर रक्ताल्पता और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं
- माइनर थैलेसेमिया: यह विकार तब होता है जब माता-पिता में से किसी एक के जीन में थैलेसीमिया होता है। इससे बच्चे को हल्की रक्ताल्पता और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं । उनके द्वारा थैलेसीमिया की जांच और उपचार- रक्त जांच, हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस, म्यूटेशन एनालिसिस टेस्ट (एमएटी), मेरूरज्जा ट्रांसप्लांट आदि के बारे में भी जानकारी दी गई। कार्यक्रम का उद्देश्य छात्रों में इन बीमारियों के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उनके स्वास्थ्य के प्रति सजग रहना था। इस व्याख्यान ने छात्राओं को सही जानकारी देकर उन्हें इन समस्याओं से निपटने के लिए प्रेरित किया। कार्यक्रम का संचालन प्रोफेसर हीरसिंह राजपूत एवं आभार प्रदर्शन डॉ. हिना हरित द्वारा किया गया । कार्यक्रम में महाविद्यालय स्टाफ एवं बड़ी संख्या में छात्राएं उपस्थित रही ।