पूरी आस्था और श्रद्धा के साथ महिलाओं ने शीतला माता को बासी भोजन (ढोकला) का लगाया भोग, की पूजा--- भगत मागरिया | @NeemuchToday

नीमच टुडे न्यूज़। शीतला सप्तमी के पर्व  के अवसर पर होलिका दहन से सप्तमी तक प्रतिदिन सुबह महिलाएं, युवतियों द्वारा होलिका दहन स्थलों और शीतला माता मंदिर पर मां शीतला की प्रतिमा पर जल चढ़ाकर ठंडा किया गया। बड़े बुजुर्गों  की मान्यता अनुसार हिन्दु परिवार के घरों में सप्तमी तक सुई धागा से किसी प्रकार की सिलाई आदि कार्य नहीं किया जाता है। क्योंकि सिलाई करने से माताजी क्रोधित हो जाती है और किसी प्रकार से हानि होने की बात कही जाती है।


शीतला सप्तमी के  दिन देवी को भोग लगाने के लिए बासी भोजन का भोग (बासोडा) उपयोग में लिया जाता है। महिलाओं द्वारा गुरुवार को सीतला सप्तमी व्रत कर पूजा अर्चना की इस दिन व्रत उपवास कर महिलाओं ने माता की कथा का श्रवण किया। मां के व्रत करने से देवी प्रसन्न होती हैं और व्रती के कुछ परिवारों में समस्त शीतला माता जनित  दोष दूर करतीं हैं, ज्वार, चेचक, नेत्रविकार आदि रोग दूर करतीं हैं। शीतला सप्तमी के एक दिन पूर्व बुधवार की रात्रि को मिला महिलाओं द्वारा झुंड के झुंड गली, मौहल्लों से माता रानी को मेहंदी लगाई गई। शीतला सप्तमी के दिन गुरुवार को अल सुबह 4 बजे से पूर्व ही शीतला माता मंदिर में पूजा अर्चना हेतु बड़ी संख्या में झुंड के झुंड पहुंचने लगी जो दोपहर तक पूजा अर्चना का क्रम जारी रहा।

महिलाओं द्वारा मेंहदी, कुमकुम,अक्षत, पुष्प, अगरबत्ती, ढोकले (बासोडा) लच्छा, दही आदि पुजन सामग्री से माता की पूजा कर परिवार की सुख समृद्धि की कामना की है। मां की पूजा अर्चना के बाद व्रती महिलाओं ने अपने घर के बाहर द्वार पर मेहंदी एवं कुम कुम से स्वास्तिक बनाकर परिवार की असाध्य बिमारी से बचने के लिए एवं परिवार की सुख समृद्धि की कामना की। व्रती महिलाओं ने घर में बड़े बुजुर्गों के चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लिया। अपने घर दरवाजे के अगल बगल में मेहंदी और कुमकुम से स्वास्तिक चिन्ह आकृति बनाई गई।

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