नीमच टूडे न्यूज़। मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपना पतन नहीं होने दें और स्वयं अपना उद्धार करें। मनुष्य स्वयं अपना मित्र हैं और शत्रु भी, जिसने अपने अहम अपने मन इन्द्रियों को वश में कर लिया है वो स्वयं ही अपना मित्र हैं और जो इनके वश में हो गया है वो स्वयं अपना शत्रु है।अभिमानी व्यक्ति आडंबरी प्रवृत्ति के दिखवा अधिक करता, चाहें भक्ति हो या अन्य कार्यक्रम। जब व्यक्ति पाप मार्ग पर निकले तो उसकी अंतर आत्मा साथ देना बंद कर देती हैं मन बुद्धि का दास हो जाए तो संकल्प की शक्ति समाप्त हो जाती हैं। लालच में जीने के बजाए परमात्मा की चाहत में जीना सिखो । गोकुल से आशय है कि हमारी पंचेंद्रियों का संसार व वृंदावन का अर्थ है तुलसी - वन अर्थात मन का वध, वृंदावन में बकासुर, अघासुर, और धेनुसुर आदि अनेक राक्षसों का वध।
उक्त अमृतवाणी कथा मर्मज्ञ पंडित चंद्रदेव महाराज चीताखेड़ा में पुराना हायर सेकंडरी स्कूल में सार्वजनिक तौर पर आयोजित साप्ताहिक श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा प्रवचन के पांचवें दिन शनिवार को अपने मुखारविंद से पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को भगवान श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का सारगर्भित वर्णन का रसास्वादन प्रवाहित करते हुए कही। कहा है कि श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का और भी मन को छू लेने वाला पहलू यह है कि शिशु तथा बालवय में ही श्री कृष्ण द्वारा अनेक राक्षसों के वध की लीलाओं तथा सहज,सरल ह्रदयी मित्रों और नंद वासियों में आनंद और प्रेम बांटने वाली क्रीड़ाएं अलौकिक रही।
महाराज ने कहा कि शिशु चरित्र गोकुल में और बाल चरित्र वृंदावन में संपन्न होने के कारण वह आध्यात्मिक अर्थ की ओर संकेत करता है गोकुल से आशय है हमारी पंचेंद्रियों का संसार व वृंदावन का अर्थ है तुलसी - वन अर्थात मन का वध ,वृंदावन में बकासुर, अघासुर, और धेनुकासूर आदि अनेक राक्षसों का वध। वृंदावन की कथाओं में गोवर्धन पूजा, रासलीला व महारास लीलाओं तथा यमुना को कालिया नाग से मुक्ति। यमुना, गंगा तथा सरस्वती नदियों को क्रमशः कर्म ,भक्ति और ज्ञान का प्रतीक माना गया है। श्री पण्डित ने कहा कि जो व्यक्ति अपनी दशों इन्द्रियों को एकाग्र चित्त करके परमात्मा की भक्ति करता है तो आत्मा को प्रसन्नता प्राप्त होती है वही गोपी है। परब्रह्म परमात्मा अभिमान की डोर से नहीं बल्कि प्रेम की डोर से बंध जाते हैं। कथा में पंडित चंद्रदेव महाराज द्वारा भागवत के प्रसंग का वर्णन जिस प्रकार व्यंग्यात्मक शैली में किया जा रहा हैं जिसको सुनना जन मानस को खुब भा रहा हैं।संक्षिप्तता भी उनकी एक विषेशता हैं किसी प्रसंग को अनावश्यक नहीं बढाते हुए वै सीधे मानव मन पर प्रहार करते हैं।उनका प्रभाव यहां बडी संख्या में उपस्थित ग्रामीणों पर पड रहा हैं।इस अलौकिक श्रीमद भागवत धर्म गंगा माहोल में शामिल होने पर श्रध्दालु अपने आपको सोभाग्य मान रहे हैं और खुद को अभीभूत महसुस कर रहे हैं।
कथा में सरपंच मंजू जैन ने की शिरकत। पौथी पूजन कर पण्डित श्री का स्वागत किया। इस मौके पर धर्म पंडाल में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए कहा कि जीवन में गुरु होना बहुत जरूरी है बिना गुरु के जीवन सफल नहीं हो सकता है। कथा वाचक पंडित जी न तो नोट लेने आए और ना ही वोट और ना ही सपोट लेने आए हैं ये तो हमें कथा सुनाकर हमारी खोट निकाल कर हमें मालामाल बनाने आए है। श्रीमद् भागवत ज्ञान गंगा का रस पान करवाते हुए कहा कि कारागार में ब्रह्म आये तो देवकी और वासुदेव की बेडियां और कारागार के ताले टूट गए और जब माया आई तो फिर बेडियां और ताले लग गए। भगवान प्रेम के बंधन में बंधता हैं बिना प्रेम के परमात्मा को कोई बान्ध नहीं सकता।
श्रीमद भागवत कथा प्रवचन के दौरान नन्दबाबा, वासुदेव देवकी, बलराम, गोरधन पूजन के साथ बाल लिला, माखन चोरी, तथा शक्तासुर, पूतना, कालिया नाग सहित अनेक धार्मिक चरित्र प्रंसगो पर विस्तार से महत्व प्रतिपादित किया। श्रौतागण श्रीकृष्ण की भक्ति में अपनी पूरी भावना से रम रहे हैं। श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा प्रवचन में प्रतिदिन पं. चंद्रदेव महाराज अपने मुखारविंद से भारतीय संस्कृति के पावन उद्देश्यों को जन -जन तक पहुंचाने हेतु प्रातः 11:30 बजे से शाम 3 बजे तक धर्म ज्ञान गंगा प्रवाहित की जा रही हैं वहीं बडी संख्या में श्रौताओ की भीड भी ज्ञान गंगा की सरिता में डुबकीया लगा रहे हैं। श्रीमद भागवत ज्ञान गंगा प्रवचन सिमित के सदस्यों ने क्षेत्र के समस्त धर्मप्रेमी बन्धुओं से अनुरोध किया कि अधिक से अधिक संख्या में पहुंच कर धर्म लाभ लेवें।