स्मृति शेष-
तब डॉ. राणावत ने कहा था, चुनौती था अटलजी का ऑपरेशन
एक दशक पहले आए थे सरवानिया महाराज- तब गांव ने पलक- पावड़े बिछाकर किया था स्वागत
राकेश सोन
सरवानिया महाराज के छोटे से गांव से निकलकर दुनिया के सबसे बड़े आर्थोपेडिक सर्जन बने डॉ. चित्तरंजन दास राणावत अब इस दुनिया में नहीं रहे। डॉ. राणावत ने नीमच को दुनिया में पहचान दिलाई। सरवानिया महाराज जैसे छोटे से गांव से निकलकर वे दुनिया की पॉवर आफ कंट्री अमेरिका पहुंचे और अस्थि रोग विशेषज्ञ के क्षेत्र में विश्व प्रसिद्ध डॉक्टर बने। डॉ राणावत की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर में हुई थी। वे डेली कॉलेज के छात्र थे और इंदौर से ही एबीबीएस पूरा किया और अमेरिका में ऑथोर्पेडिक सर्जन बने। एक दशक पहले डॉ. राणावत अमेरिका से पूरे परिवार के साथ सरवानिया महाराज आए थे, उस समय में नीमच भास्कर में ब्यूरोचीफ था, तब नई दुनिया के साथी दिनेश प्रजापति के साथ हम सरवानिया महाराज डॉ. राणावत की हवेली पहुंचे। डॉ. राणावत का स्वागत करने तत्कालीन कलेक्टर डॉ. संजय गोयल और एसपी टी. अमोग्ला अय्यर भी मौजूद थे। अमेरिका में लंबे समय रहने के दौरान डॉ. राणावत अमेरिकन लेग्वेज मे ढल चुके थे, उन्हीं हिंदी बोलने-समझने में दिक्कती आती थी, तब इंदौर से एक रिश्तेदार नीमच आए थे, वे ट्रांसलेट कर जवाब देते। डॉ. राणावत से चर्चा के दौरान मैंने पूछा, आपने देश के प्रधानमंत्री अटल जी का घुटनों का ऑपरेशन किया, उस समय कितना मुश्किल था, एक पीएम का ऑपरेशन करना। डॉ. राणावत का जवाब था, चुनौती था लेकिन नामुमकिन नहीं, ऑपरेशन सफल रहा थ। योगा को लेकर किए सवाल पर डॉ. राणावत ने कहा योगा अपनी जगह है और एलोपैथिक अपनी जगह, लेकिन जो एलोपैथिक कर सकता है वह योग नहीं कर सकता और एलोपैथिक की जगह कभी योगा नहीं ले सकता। डॉ. राणावत लंबे समय बाद सरवानिया आए तो अपने गांव में घूमे, पूरा गांव सजा हुआ था, गांव के चौराहे पर भव्य स्वागत किया गया और वे ग्रामीणों से ऐसे मिले जो पुराने मित्र हो।
तब अटल जी ने कहा था.. देश के गौरव है डॉ. राणावत
वर्ष 2000 में डॉ. चितरंजन दास राणावत ने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपयी के घुटनों का ऑपरेशन किया था जो की चुनौती पूर्ण था और डॉ. राणावत ने इस सफलता पूर्वक अंजाम दिया। 2001 में डॉ. राणावत को भारत सरकार द्वारा देश का तीसरा सर्वोच्च सम्मान पदम भूषण दिया गया। उस समय अटल जी ने कहा था देश के गौरव है डॉ. राणावत।